भगवान लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा की नाक काटे जाने की कथा रामायण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो साहस, मर्यादा और धर्म की रक्षा का प्रतीक है। इस घटना को रोचक ढंग से समझाते हैं:
1. शूर्पणखा का आगमन और प्रस्ताव:
शूर्पणखा, जो रावण की बहन थी, पंचवटी में भगवान राम को देखकर उन पर मोहित हो गई। उसने राम को शादी का प्रस्ताव दिया। भगवान राम ने मुस्कुराते हुए कहा,
“मैं पहले से विवाहित हूं। मेरी पत्नी सीता जी हैं। लेकिन मेरा छोटा भाई लक्ष्मण अविवाहित है। तुम उनसे बात कर सकती हो।”
2. लक्ष्मण से सामना:
राम के सुझाव पर शूर्पणखा लक्ष्मण के पास गई और विवाह का प्रस्ताव रखा। लक्ष्मण ने विनम्रता से उसे मना करते हुए कहा,
“मैं तो अपने भाई का सेवक हूं। तुम्हारे लिए मेरे बड़े भाई राम ही उपयुक्त हैं।”
इससे शूर्पणखा क्रोधित हो गई और उसने अपने असली राक्षसी रूप में आकर सीता जी पर हमला करने की धमकी दी।
3. लक्ष्मण का धर्म:
जब शूर्पणखा ने सीता जी की ओर कदम बढ़ाए, तो लक्ष्मण ने तुरंत उसे रोकते हुए कहा,
“यह मर्यादा पुरुषोत्तम राम का घर है। यहां पर स्त्रियों और निर्दोषों पर कोई आघात सहन नहीं होगा।”
4. नाक काटने का कारण:
शूर्पणखा ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए धर्म और मर्यादा का उल्लंघन करने की कोशिश की। लक्ष्मण ने उसे सबक सिखाने के लिए उसकी नाक काट दी।
नाक काटने का प्रतीक यह था कि उसने अपनी “मर्यादा” खो दी थी। लक्ष्मण ने न केवल सीता की रक्षा की बल्कि धर्म की सीमाओं को पार करने वालों को एक सख्त संदेश दिया।
5. नाक काटने का रोचक पहलू:
यह घटना यह दिखाती है कि शक्ति और सुंदरता का घमंड कभी स्थायी नहीं रहता। शूर्पणखा के घमंड ने ही उसकी नाक कटवाई। यह भारतीय संस्कृति में नाक का प्रतीकात्मक महत्व भी दर्शाता है, जो सम्मान और प्रतिष्ठा से जुड़ा है।
6. परिणाम:
इस घटना ने रावण को राम से लड़ने के लिए प्रेरित किया, जिससे रामायण के महाकाव्य का युद्ध आरंभ हुआ। यह दर्शाता है कि कैसे एक छोटी सी घटना बड़े बदलाव का कारण बन सकती है।
शूर्पणखा की नाक काटने का संदेश है कि अहंकार, अधर्म और दूसरों को हानि पहुंचाने की प्रवृत्ति का अंत निश्चित है।